आतंकवाद की समस्या आज विश्व की गंभीर चिंताओं में शामिल हैं और अमूमन हर देश इससे लड़ने या इस पर काबू पाने के लिए अपनी ओर से हर मुमकिन कोशिश कर रहा है। मगर अफसोस की बात यह है कि दुनिया में जिन देशों को आतंकवादी संगठनों को शरण देने का आरोपी माना जाता है, उन पर इन चिंताओं का कोई असर नहीं होता। यह बेवजह नहीं है कि हर कुछ समय बाद दुनिया के किसी न किसी हिस्से में आतंकवादी घटना सामने आती है और उसमें नाहक ही लोग मारे जाते हैं। इस संदर्भ में देखें तो अब विश्व समुदाय यह बिना किसी हिचक के स्वीकार करता है कि पाकिस्तान में आतंकी संगठनों को प्रत्यक्ष या परोक्ष बढ़ावा मिलता रहा है। शायद इसीलिए खासतौर पर पाकिस्तानी सीमा से सटे देशों में अक्सर आतंकी घुसपैठ से लेकर हमलों तक की घटनाएं होती रहती हैं। हालांकि यह समझना मुश्किल है कि किसी देश को अपने पड़ोसियों को आंतरिक रूप से अस्थिर करने और हिंसा का माहौल बनाए रखने का मकसद आखिर क्या होता है। विडंबना यह है कि पाकिस्तान इस समस्या से उपजी त्रासदी को समझने को तैयार नहीं हो पा रहा है, जबकि हर कुछ समय बाद किसी न किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसे आतंकवाद को प्रश्रय देने की वजह से फजीहत झेलनी पड़ती है। उसके लिए इन समस्याओं से ध्यान हटाने का एकमात्र जरिया भारत को निशाने पर लेना रहता है। वह बेमानी तौर पर भी भारतीय कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन और अन्याय का जिक्र छेड़ कर विश्व समुदाय का ध्यान भटकाने की कोशिश करता है। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की जेनेवा में हुई बैठक में मंगलवार को पाकिस्तान की मानवाधिकार मंत्री शिरीन मजारी ने यह आरोप लगाया कि भारत कश्मीरी लोगों के मानवाधिकारों का हनन कर रहा है। दरअसल, पाकिस्तान की असली पीड़ा कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर है। शुरुआती उथल-पुथल के बाद अब वहां हालात सामान्य हो रहे हैं। लेकिन सवाल है कि आखिर पाकिस्तान को भारत के किसी वैसे फैसले में जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी लेने का अधिकार कैसे है, जिसमें वह कोई भी पक्ष नहीं है। यों भी, भारत जैसे संप्रभु देश के आंतरिक मामलों में दखल देने के खयाल से पाकिस्तान को बचना चाहिए। हालांकि भारत की ओर से पाकिस्तान के इस रुख का तीखा जवाब दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र की उसी बैठक में भारतीय राजनयिक ने साफतौर पर कहा कि पाकिस्तान वैश्विक आतंकवाद का केंद्र है और विश्व समुदाय को उन देशों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करनी होगी, जो आतंकवादियों को धन और शरण मुहैया कराते हैं। हालांकि कुछ समय पहले तक पाकिस्तान इस तरह के आरोपों को खारिज करता रहा था, लेकिन हकीकत से सभी देश परिचित हैं। बेजिंग में हुए नौवें ब्रिक्स सम्मेलन के घोषणा-पत्र में तो औपचारिक रूप से पाकिस्तान स्थित ठिकानों से आतंकी गतिविधियां संचालित करने का मुद्दा शामिल किया गया था। इसके बाद ही पाकिस्तान इस मसले पर थोड़ा दबाव में आया और अपनी सीमा के तहत स्थित ठिकानों से आतंकी गतिविधियां संचालित करने वाले संगठनों के खिलाफ कार्रवाई का भरोसा दिया था। लेकिन आए दिन यह साबित होता रहा है कि पाकिस्तान के लिए इस तरह के आश्वासनों की अहमियत कितनी है। आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई के मामले में उसे औपचारिकता से आगे बढ़ कर ठोस पहलकदमी करनी होगी। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि आतंकवाद की आग पर अगर काबू नहीं पाया गया।
आतंक के ठिकाने